इरशाद कामिल साब से जब मिलता हूँ तो लगता है चुपचाप बैठ कर बस उनको सुनता रहूँ। उनके लिखे कितने ही शब्द, गीत, कवितायें ज़िंदा हो उठते हैं। एक इंटरव्यू में उन्होंने बहुत अच्छी बात बोली थी, जो मैंने गाँठ बाँध ली। “शब्द का रिश्ता समझ से है और समझ की शक्ल बनने में समय लगता है”
मुंबई में इरशाद साब जैसे व्यक्ति का होना, सुकून देता है। मुलाकातें ज़िंदाबाद रहें। इस पोस्ट के साथ आपका वो गाना टैग कर रहा हूँ जिसने कमज़ोर दिनों में मज़बूती से सम्भाला था। (फिल्म - सोचा ना था, गीत - ना सही) ये गाना हमेशा पसंदीदा रहेगा। 🩵
फ़िल्म चमकीला के गीतों के लिए अग्रिम बधाइयाँ। 🌻🤗
@kamil_irshad_official 🙏🤗